12 जून 2025 की सुबह थी। लोग अपने काम पर जा रहे थे, किसी को एयरपोर्ट छोड़ने जा रहे थे… और अहमदाबाद से लंदन के लिए उड़ान भर रहा था एयर इंडिया का विमान AI-171। पर किसी को नहीं पता था कि ये उड़ान इतिहास की सबसे दर्दनाक कहानियों में दर्ज होने जा रही है।
टेक-ऑफ के 60 सेकंड बाद सब कुछ बदल गया...
सुबह ठीक 6:32 पर फ्लाइट ने रनवे छोड़ा, लेकिन सिर्फ 1 मिनट बाद, एयर ट्रैफिक कंट्रोलर के कानों में वो शब्द गूंजे जिन्हें कोई नहीं सुनना चाहता:
“Thrust नहीं मिल रहा... हम गिर रहे हैं...!”
कुछ ही सेकंड में विमान का संपर्क टूट गया। और वो सीधा बी.जे. मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल की बिल्डिंग से जा टकराया। न सिर्फ विमान के सभी 241 लोग, बल्कि हॉस्टल में रह रहे 29 मेडिकल स्टूडेंट्स भी इस हादसे में मारे गए।
घर से निकले थे लंदन के लिए, मंज़िल कब्र बन गई
इस हादसे में 270 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई। अस्पताल के बाहर शवों की कतारें लगी थीं। कई परिवारों को तो अब तक यही नहीं पता कि उनके अपने कहां हैं, किस हालत में हैं।
और इसी बीच, एक ऐसी खबर आई जिसने सबको हैरान कर दिया.
एक ज़िंदा इंसान – एक सीट, एक दरवाज़ा, एक चमत्कार
विश्वाश रमेश—42 साल के एक ब्रिटिश-भारतीय यात्री। वो फ्लाइट में सीट 11A पर बैठे थे, ठीक इमरजेंसी एक्सिट के पास। हादसे के वक्त वो किसी तरह विमान के हिस्से के साथ हॉस्टल की छत पर गिरे। गंभीर रूप से जल चुके थे, लेकिन जिंदा थे।
डॉक्टरों ने कहा—“ये मेडिकल मिरेकल है।”
एक एक्स-क्वांटस पायलट बोले—“शायद मौत भी हैरान हो गई होगी, उसे छोड़कर चली गई।”
🧪 ब्लैक बॉक्स मिला – जवाबों की उम्मीद जगी
करीब 28 घंटे की खोज के बाद ब्लैक बॉक्स मिल गया। अब यही बताएगा कि आखिर उस दिन क्या हुआ था?
प्रारंभिक जांच में संकेत मिल रहे हैं कि पायलट से कुछ गलतियाँ हुईं—जैसे कि लैंडिंग गियर समय पर नीचे नहीं किया गया, फ्लैप्स सही तरीके से इस्तेमाल नहीं हुए। लेकिन असली सच तो ब्लैक बॉक्स ही बताएगा।
💰 मुआवज़ा, आँसू और सरकार की कोशिशें
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एयर इंडिया ने हर मृतक परिवार को ₹1.25 करोड़ मुआवज़ा देने की घोषणा की।
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केंद्र और राज्य सरकार ने DNA टेस्टिंग टीम, राहत फोर्स और मनोवैज्ञानिक सहायता टीमें भेजीं।
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पीएम मोदी से लेकर लंदन के मेयर तक ने शोक संवेदनाएं भेजीं।
📝Note-
जब भी हम कोई उड़ान पकड़ते हैं, तो हमें भरोसा होता है कि सब ठीक होगा। पर इस हादसे ने ये दिखा दिया कि ज़िंदगी में कुछ भी तय नहीं।
विश्वाश रमेश की कहानी हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी ज़िंदगी आपको दूसरी बार मौका देती है।
और बाक़ी 270 लोगों की यादें हमें ये सिखाती हैं कि हमें हर उड़ान, हर फैसले और हर ज़िंदगी को कितनी इज़्ज़त से देखना चाहिए।